ආගම රාජ්යයෙන් වෙන් නොවන්නේ ඇයි? බටහිර රටවල මෙන් මානව මතයට යොමු නොවන්නේ ඇයි?

पश्चिमी अनुभव मध्य युग में लोगों की क्षमताओं और दिमागों पर चर्च और राज्य के प्रभुत्व और गठबंधन की प्रतिक्रिया के रूप में आया। इस्लामिक व्यवस्था की व्यवहारिकता और तर्क को देखते हुए इस्लामी जगत ने कभी भी इस समस्या का सामना नहीं किया है।

वास्तव में, हमें एक दृढ़ दिव्य नियम की आवश्यकता है, जो मनुष्य के लिए उसकी सभी स्थितियों में उपयुक्त हो। हमें ऐसे संदर्भों की आवश्यकता नहीं है, जो मानवीय ख़्वाहिशों, इच्छाओं और मिजाज के अनुसार हों! जैसा कि सूदखोरी, समलैंगिकता और अन्य चीज़ों को वैध ठहराने में होता है। इसी तरह हमें ऐसे संदर्भों की भी आवश्यकता नहीं है, जो ताक़तवरों की तरफ से लिखे जाएं, ताकि कमज़ोरों के लिए बोझ बन जाएं, जैसा कि पूंजीवादी व्यवस्था में होता है। हमें साम्यवाद भी नहीं चाहिए, जो संपत्ति के मालिक होने की इच्छा की प्रकृति का विरोध करता है।

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